Our canal system which is life line for our agriculture, spoiled sizable area of fertile land by seepage. The seepage can be prevented if bottom of canal is lined by cement concrete bricks and side walls by thick HD plastic sheets. Some times machines are operated in the canal to de-silt it. The cement concrete tiles will with stand the pressure of the machines and at the same time a small amount of water will percolate down to recharge ground water. This will save 60% water and stop land degradation. The spoiled land will be reclaimed in time.
गंगा की पुकार
Saturday 6 December 2014
Friday 5 December 2014
ऊर्जा
गंगा को पुनर्जीवित करने हेतु विगत कुछ दशको में इसकी तलहटी में जमा गाद को हटाना एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसके लिए अत्यधिक जोश एवं ऊर्जा की आवश्यकता होगी. इस ऊर्जा की पूर्ति यांत्रिक अथवा मानवीय दोनों संसाधनों द्वारा संभव है. वस्तुतः यह कहना सही होगा की इस परिप्रेक्ष्य में यंत्रो के स्थान पर केवल मानवीय ऊर्जा ही अपेक्षित कार्य करेगी. यंत्रो के सहारे गंगा की गाद साफ़ कर पाना मुश्किल है जबकि मानव श्रम द्वारा इस कार्य को कुशलता पूर्वक आसानी से किया जा सकता है.
सावन माह में कावन यात्रा के दौरान असीमित जोश एवं उर्जा का प्रदर्शन होता है. इस उर्जा को उचित दिशा प्रदान कर दी जाय तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हो सकते है.बैद्यनाथ धाम देवधर में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है जहाँ की भूमि पथरीली अनुपजाऊ है.प्रतिवर्ष लाखों कांवरिये असीमित उर्जा से अभिभूत गंगाजल बाबा वैद्यनाथ पर चढाते है.ये कांवरिये गंगाजल के साथ साथ अपने क्षेत्र के जलश्रोत की थोड़ी मिटटी भी यदि यहाँ लेते आये तो इससे दो फायदे होंगे.कालांतर में स्थानीय जलश्रोत स्वतः गहरे हो जायेगे तथा बाबा धाम के आसपास की भूमि उपजाऊ हो जाएगी.आवश्यकता प्रधानमंत्रीजी एवं अन्य क्षेत्र के नेताओ द्वारा प्रभावी अपील की है जिससे इस असीमित उर्जा को उचित दिशा मिले.
सावन माह में कावन यात्रा के दौरान असीमित जोश एवं उर्जा का प्रदर्शन होता है. इस उर्जा को उचित दिशा प्रदान कर दी जाय तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हो सकते है.बैद्यनाथ धाम देवधर में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है जहाँ की भूमि पथरीली अनुपजाऊ है.प्रतिवर्ष लाखों कांवरिये असीमित उर्जा से अभिभूत गंगाजल बाबा वैद्यनाथ पर चढाते है.ये कांवरिये गंगाजल के साथ साथ अपने क्षेत्र के जलश्रोत की थोड़ी मिटटी भी यदि यहाँ लेते आये तो इससे दो फायदे होंगे.कालांतर में स्थानीय जलश्रोत स्वतः गहरे हो जायेगे तथा बाबा धाम के आसपास की भूमि उपजाऊ हो जाएगी.आवश्यकता प्रधानमंत्रीजी एवं अन्य क्षेत्र के नेताओ द्वारा प्रभावी अपील की है जिससे इस असीमित उर्जा को उचित दिशा मिले.
Water economy-Sprinklers and drip irrigation
Irrigation either by diesel or electric driven pumps must be carried out with sprinklers and drip system. It will stop water wastage.Petrol pumps and electricity department can facilitate scheme effectively.They can be centres of teaching,advising and maintaining the system.The economic use of water is the need of hour. What ever water is withdrawn for irrigation, its 40% is wasted due to seepage and evaporation. Drip irrigation system and sprinklers prevent such water wastage.
The idea can be implemented in dark zone blocks.
The idea can be implemented in dark zone blocks.
Tuesday 2 December 2014
Solid Waste Management
Solid waste management must be our top priority. Today waste is either left
open for decay or dumped in ponds or water body. So many ponds of Kanpur
are destroyed in this way and several colonies grew up on extinct ponds. The
local bus station is on a filled up half pond where remaining pond still can be
seen. Kanpur would have been an example of solid waste management plant but
vested interests and apathy of the Bigs made plant failure. Every town of the
country needs such plants. Immediate attention is required.
Friday 28 November 2014
Blue Revolution and Ganga
Blue revolution is another field which need our immediate attention to rejuvenate our streams, rivulets, rivers and ultimately Ganga. Lucrative returns in fish cultivation is the guarantee for round the year water in the ponds, other wise they are disappearing very fast. In fact most of the ponds disappeared. It will solve ground water problem and ultimately water in rivers will improve.
Wednesday 22 October 2014
प्रस्तावना
वर्तमान में गंगा नदी के परिप्रेक्ष्य में निम्न तीन मुख्य समस्याए है-
१.जल की मात्रा में अप्रत्याशित रूप में कमी,
२.नदी तट में प्रतिवर्ष अत्यधिक गाद का जमाव, एवं
३.नदी तट पर स्थित शहरी इकाइयों के अपशिष्टों का नदी में सीधे निस्तारण.
इन समस्याओ को सुलझाने के लिए अबतक बहुत कुछ कहा गया है, लिखा गया है, आन्दोलन किये गए है, एवं प्रचुर धनराशि भी व्यय की जा चुकी है परन्तु अपेक्षित परिणाम कहीं दिखायी नहीं पड़ रहे है. इन तीनो बिंदुओं पर निम्न प्रकार से कार्यवाही करते हुए कम समय में अपेक्षित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है-
१.गंगा नदी के दो जल स्रोत्रो में से हिमालय की घटती हुई बर्फ को बढ़ाना फिलहाल मानव के वश में नहीं है किन्तु दूसरा जल स्रोत- सहायक नदियाँ, नाले, झील, तालाब आदि को पुनर्जीवित किया जा सकता है. गंगा नदी के कैचमेंट एरिया में पडने वाले सभी तालाबो, पोखरों, झीलों, सागर आदि को अधिकतम क्षमता तक गहरा करके अधिकतम जल संचय योग्य बनाया जाय.परिणामस्वरूप छोटे छोटे नालों एवं नदिओं में वर्ष पर्यन्त जल उपलब्ध रहेगा जो गंगा की सहायक नदिओं के माध्यम से गंगा तक आसानी से पहुँच जायेगा तथा भूजल पुनर्भरण अधिकतम होने से भूजल भी गंगा नदी में स्वयमेव पहुंचेगा.
२.गंगा नदी की सम्पूर्ण लम्बाई में जहाँ - जहाँ संभव हो- दोनों किनारों पर दो से डेढ़ किलोमीटर तक या अधिक भूमि को आरक्षित करके खेती पर रोक लगा देना चाहिए ताकि कृषि कार्यों के परिणामस्वरूप ढीली हुई मिटटी नदी की ओर ढलान होने के कारण वर्षा जल के साथ नदी में न जा सके. इस आरक्षित भूमि पर छोटे छोटे उगती हुई वनस्पतिओं की कटाई एवं जानवरों की चराई रोक दी जाय तो प्राकृतिक रूप में इस पर कालांतर में स्वतः विषद जंगल उत्पन्न हो जाएगा. यह जंगल गंगा में जाने वाली गाद को प्रभावी तरीके से रोकेगा. नदी ताल पर जमी गाद बढे जल प्रभाव के परिणाम स्वरुप धीरे धीरे स्वतः साफ़ होती जायेगी.
३.शहरी अपशिष्टो के निस्तारण में मोडर्न एवं लेटेस्ट तकनीक का प्रयोग करके प्रदूषित जल एवं ठोस अपशिष्टों का पुनः प्रयोग करके नदी में जीरो डिस्चार्ज की अवधारणा का शत प्रतिशत प्रयोग सुनिश्त किया जाय. हम लोग आज कल डेढ़ सौ दो सौ साल पुरानी तकनीक का प्रयोग कर रहे है जो अपशिष्टो की प्रकृति बदल जाने के फलस्वरूप निष्प्रभावी हो चुकी है.
उपरोक्तानुसार यदि कार्यवाही की जाये तो कम से कम समय में कम से कम व्यय में आशानुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते है.
१.जल की मात्रा में अप्रत्याशित रूप में कमी,
२.नदी तट में प्रतिवर्ष अत्यधिक गाद का जमाव, एवं
३.नदी तट पर स्थित शहरी इकाइयों के अपशिष्टों का नदी में सीधे निस्तारण.
इन समस्याओ को सुलझाने के लिए अबतक बहुत कुछ कहा गया है, लिखा गया है, आन्दोलन किये गए है, एवं प्रचुर धनराशि भी व्यय की जा चुकी है परन्तु अपेक्षित परिणाम कहीं दिखायी नहीं पड़ रहे है. इन तीनो बिंदुओं पर निम्न प्रकार से कार्यवाही करते हुए कम समय में अपेक्षित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है-
१.गंगा नदी के दो जल स्रोत्रो में से हिमालय की घटती हुई बर्फ को बढ़ाना फिलहाल मानव के वश में नहीं है किन्तु दूसरा जल स्रोत- सहायक नदियाँ, नाले, झील, तालाब आदि को पुनर्जीवित किया जा सकता है. गंगा नदी के कैचमेंट एरिया में पडने वाले सभी तालाबो, पोखरों, झीलों, सागर आदि को अधिकतम क्षमता तक गहरा करके अधिकतम जल संचय योग्य बनाया जाय.परिणामस्वरूप छोटे छोटे नालों एवं नदिओं में वर्ष पर्यन्त जल उपलब्ध रहेगा जो गंगा की सहायक नदिओं के माध्यम से गंगा तक आसानी से पहुँच जायेगा तथा भूजल पुनर्भरण अधिकतम होने से भूजल भी गंगा नदी में स्वयमेव पहुंचेगा.
२.गंगा नदी की सम्पूर्ण लम्बाई में जहाँ - जहाँ संभव हो- दोनों किनारों पर दो से डेढ़ किलोमीटर तक या अधिक भूमि को आरक्षित करके खेती पर रोक लगा देना चाहिए ताकि कृषि कार्यों के परिणामस्वरूप ढीली हुई मिटटी नदी की ओर ढलान होने के कारण वर्षा जल के साथ नदी में न जा सके. इस आरक्षित भूमि पर छोटे छोटे उगती हुई वनस्पतिओं की कटाई एवं जानवरों की चराई रोक दी जाय तो प्राकृतिक रूप में इस पर कालांतर में स्वतः विषद जंगल उत्पन्न हो जाएगा. यह जंगल गंगा में जाने वाली गाद को प्रभावी तरीके से रोकेगा. नदी ताल पर जमी गाद बढे जल प्रभाव के परिणाम स्वरुप धीरे धीरे स्वतः साफ़ होती जायेगी.
३.शहरी अपशिष्टो के निस्तारण में मोडर्न एवं लेटेस्ट तकनीक का प्रयोग करके प्रदूषित जल एवं ठोस अपशिष्टों का पुनः प्रयोग करके नदी में जीरो डिस्चार्ज की अवधारणा का शत प्रतिशत प्रयोग सुनिश्त किया जाय. हम लोग आज कल डेढ़ सौ दो सौ साल पुरानी तकनीक का प्रयोग कर रहे है जो अपशिष्टो की प्रकृति बदल जाने के फलस्वरूप निष्प्रभावी हो चुकी है.
उपरोक्तानुसार यदि कार्यवाही की जाये तो कम से कम समय में कम से कम व्यय में आशानुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते है.
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